क्रीमीलेयर देश के संविधान और ओबीसी के साथ षडयंत्र।
क्रीमीलेयर की बात आने पर ओबीसी वर्ग में भी अक्सर दो मत बन जाते है, एक वह वर्ग जो अभी तक सरकारी नौकरियों के मामले में वंचित है और एक वह वर्ग जो सरकारी नौकरियों या छोटे-छोटे व्यापार या स्वयं रोजगार से साधन समपन्न नजर आता है। जो वंचित और गरीब है उसको लगता है कि क्रीमीलेयर उसके भले की बात है, ऐसा उसको इसलिए लगता है क्योंकि उन साधन समपन्न लोगों ने उसकों जागरूक नहीं किया और न ही अपने आप को जागरुक बनाया। इस बात से आपको समंझ जाना चाहिए कि समाज को जागरुक नहीं करने के क्या क्या नूकसान आपको झेलने पड़ सकते है ? यदि आपने उस अंतिम व्यक्ति को जागरुक करने की जहमत उठाई होती तो वह आज इस गलतफहमी का शिकार नहीं होता ?
इस क्रीमीलेयर से पिछड़े वर्ग में ही शैतानों ने दो वर्ग निर्माण कर दिए है,एक इसका पक्षधर और दूसरा इसका विरोधी, इस समस्या का समाधान करना बेहद जरुरी है। इस समस्या को ब्राहमणवादी बना कर ही रखना चाहेंगे और इस समस्या से ओबीसी वर्ग का निरंतर नूकसान ही होगा।अब ओबीसी वर्ग के बुद्धिजीवी साथियों को सोचना है कि इस समस्या को निरंतर बना कर रखा जाए या नहीं ? और केवल ओबीसी को ही नहीं बल्कि अनुसूचित जाति और जन जाति के बुद्धिजीवी साथियों को भी साथ सहयोग करने की आवश्यकता है।
क्रीमीलेयर पर गहन चिंतन मनन करेंगे तो इसकी गहरी साजिश आपके सामने आने लगेगी, आइए कुछ बिंदुओं पर चर्चा करें 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ओबीसी का एक भी प्रोफेसर क्यों नहीं है ? सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में ओबीसी के न्यायाधीश क्यों नहीं है ? इन पर नजर डालिए, विश्लेषण कीजिए, आखिर सभी विभागों में ओबीसी नदारद क्यों है ? क्या ओबीसी पढ़ता नहीं है ? क्या ओबीसी बुद्धिजीवी नहीं है ? क्या ओबीसी अज्ञानी है ? आखिर क्या कारण है कि आज तक ओबीसी का 27 प्रतिशत कोटा भी हर जगह पूरा क्यों नहीं हो पाया ? क्या इसके लिए क्रीमीलेयर जिम्मेदार है ? दूसरा क्या क्रीमीलेयर जरूरी है ? क्या भारतीय संविधान के अनुसार क्रीमीलेयर होना चाहिए ? आदि सवालों पर ध्यान देने की जरुरत है।
क्रीमीलेयर के लिये केंद्र सरकार ने 8 लाख रुपये की सीमा तय की हुई है। पहली बात यह है कि क्या भारतीय संविधान के अनुसार यह जायज है ? आपका उत्तर हो सकता है कि ऐसा करना गरीबों के लिए, वंचितों के लिए अच्छा है, लेकिन हरियाणा सरकार ने इस सीमा 17 नवंबर 2021 को एक अधिसूचना के माध्यम से 6 लाख रुपये निर्धारित कर दिया है। देश में 8 लाख रुपये की शर्त के कारण ओबीसी वर्ग महज 11 प्रतिशत भागेदारी ही सुनिश्चित कर पाया है, जबकि ओबीसी वर्ग 1931 की जनगणना के मुताबिक 52 प्रतिशत था, जिसमें स्वभाविक रुप से और भी बढ़ोतरी हुई होगी क्योंकि ओबीसी वर्ग देश का बड़ा हिस्सा है और बड़ा हिस्सा होने के नाते बढ़ोतरी भी इसी वर्ग की हुई होगी। इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस वर्ग में बहुत सी जातियां अभी भी शिक्षा से वंचित है और इनमें जागरूकता का भी अभाव है और इस वर्ग के बहुत से लोग अभी भी बच्चों को परमात्मा की देन मानते है जिसके कारण भी इस वर्ग की संख्या में बढ़ोतरी निश्चित तौर पर हुई है,हालांकि अनुसूचित जाति और जनजातियों में भी इस प्रकार की सोच वाले लोग है।
ओबीसी वर्ग की संख्या 52 प्रतिशत है और हिस्सेदारी 27 प्रतिशत है अर्थात ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। भारत का संविधान ओबीसी को संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व की बात करता है, जिसके लिए अनुच्छेद 340 का प्रावधान भारत के संविधान में किया गया है, इसके अनुसार ओबीसी की संख्या की गणना करके उसे संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए था लेकिन आज तक इस देश की सरकारों ने ओबीसी के साथ यह खिलवाड़ क्यों किया ? भारत के संविधान के अनुसार संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व क्यों नहीं दिया ? आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार है ? आप सोचिए यदि ओबीसी को 52 प्रतिशत हिस्सा मिला होता तो आज क्या स्थिति होती ? ओबीसी के पास बड़े पैमाने पर रोजगार होते और ओबीसी वर्ग की अच्छी स्थिति होती तो वह बड़े पैमाने पर और अधिक देश के विकास में योगदान देता।
हरियाणा में भाजपा की सरकार है और हरियाणा सरकार ने 6 लाख रुपये की शर्त लगा कर अपने मंसूबे जाहिर कर दिए है कि ओबीसी के साथ और क्या होने वाला है ? ओबीसी अभी भी गहरी नींद सोता रहा तो आने वाले समय में और अधिक पिछड़ने से फिर कोई नहीं रोक पाएगा,इससे देश का भी नूकसान होगा क्योंकि देश की बड़ी संख्या के साथ इस प्रकार की धोखाधड़ी किसी भी प्रकार से उचित नहीं है।
8 लाख रुपये की शर्त से ही ओबीसी अपना हिस्सा सुनिश्चित नहीं कर पा रहा है, क्या 6 लाख रुपये की क्रीमीलेयर की शर्त से वह आगे बढ़ पाएगा ? यदि आपका ऐसा मानना है कि ओबीसी में बहुत अधिक साधन समपन्न लोग है तो यह गलत है क्योंकि यदि इतने साधन समपन्न लोगों से ही 27 प्रतिशत कोटा ही नहीं भरा जा रहा और यदि इन साधन समपन्न को बाहर कर दिया जाएगा तो फिर क्या ओबीसी वर्ग का 27 प्रतिशत कोटा पूरा हो पाएगा ? बिल्कुल भी नहीं ,ओबीसी वर्ग और अधिक पिछड़ जाएगा,जो ओबीसी आज बड़ी मुश्किल से 11 प्रतिशत तक पहुंच पाया है यह आंकड़ा और अधिक गिर जाएगा । इसलिए न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी ,क्योंकि अपने बच्चों को पढ़ाने वाला वर्ग क्रीमीलेयर में बाहर हो जाएगा और न पढ़ाने वाले तो बाहर हैं ही,इस षडयंत्र को ओबीसी को समझना चाहिए क्योंकि शिक्षा बहुत महंगी हो गई है और सरकारी स्कूलों की शिक्षा को धवस्त किया जा रहा है। आम आदमी का शिक्षा से और सरकारी व्यवस्था से विश्वास उठता जा रहा है,ऐसे में आम आदमी शिक्षा से और भी दूर भाग जाएगा, जब उसे लगने लग गया है कि शिक्षा का अब कोई लाभ नहीं है। शिक्षा से उसे रोजगार मिलने वाला नहीं है। निजीकरण को बढ़ावा देकर भी शिक्षा से आम आदमी का मुंह मोड़ा जा रहा है, ताकि वह पढ़ ही नहीं पाए।
आज ओबीसी के हर व्यक्ति को एक साथ खड़ा होने की आवश्यकता है अन्यथा इस असवैधानिक क्रीमीलेयर की आड़ में ओबीसी युवाओं का भविष्य चौपट होने वाला है। इसलिए आज हमें क्रीमीलेयर के पक्षधर लोगों से पूछना पड़ेगा,आज ओबीसी के युवा को पुछना चाहिए कि बताइए 8 लाख की शर्त से ओबीसी का हिस्सा पूरा क्यों नहीं हुआ ? क्या अब 6 लाख की शर्त से यह पूरा हो जाएगा ? जब क्रीमीलेयर नहीं था तब पूरा क्यों नहीं था ? पहले तो तुमने हमें पूरा नहीं दिया ,दूसरा इसको घोषणा करके भी पूरा करने के प्रयास इमानदारी से नहीं किए, क्या तुम पर अब भी हम भरोसा करें ? नहीं, नहीं, अब भरोसा नहीं हो सकता। अब 52 प्रतिशत हिस्सेदारी लेकर ही रहेंगे।
क्रीमीलेयर हमारे खिलाफ तुम्हारा षडयंत्र है क्योंकि इसके माध्यम से तुम हमें आपस में लड़ाना चाहते हो, हम तुम्हारे इस षड़यंत्र को समंझ गए है क्योंकि पढ़ाने वाला क्रीमीलेयर में बाहर होगा और बिना पढ़ाने वाला वैसे ही बाहर है। नई शिक्षा में गरीब तो अपने बच्चों को पढ़ा ही नहीं पाएगा, तो गरीब को इसका लाभ कैसे मिल पाएगा ? तुम्हारी शैंतानी को हम समंझ गए है।
हमें मालूम है कि प्रतिनिधित्व हिस्सेदारी है जिसे तुम आरक्षण आरक्षण चिल्ला कर हमें बदनाम करते हो,हमें अपना हिस्सा चाहिए और वह भी संख्या के अनुपात में, या तो 1931 की जनगणना के मुताबिक 52 प्रतिशत हिस्सा दो,यदि तुम्हारी इस पर सहमति नहीं है तो जातिआधारित जनगणना करवाओ और संख्या के अनुपात में हमें प्रतिनिधित्व दो।
अभी तक 27 प्रतिशत के अनुसार ओबीसी की भागेदारी किसी भी विभाग में पुरी नहीं हुई है, बिना इस भागेदारी को सुनिश्चित किए क्रीमीलेयर लगाना कहां तक उचित है ? क्या क्रीमीलेयर के माध्यम से हमें और भी पिछाड़ना चाहते हो ? क्रीमीलेयर का सवाल तब खड़ा होना चाहिए था जब तुमने हमें 52 प्रतिशत हिस्सा दिया होता और ईमानदारी से 52 प्रतिशत भरा भी होता,देश के तमाम संसाधनों में 52 प्रतिशत हिस्सा पूर्ण किया होता तब यदि ओबीसी में गरीब बचते तो और उन्हें लाभ नहीं मिलता तो क्रीमीलेयर लगा देते,आखिर अब बिना भरे ही क्रीमीलेयर क्यों ? हम जानते है कि क्रीमीलेयर असवैधानिक है क्योंकि भारत के संविधान में क्रीमीलेयर का वर्णन नहीं है।
हमें 52 प्रतिशत हिस्सा चाहिए ,यदि यह हिस्सा मिलने पर भी गरीब रहते है तो सर्वे करवा कर लगा देना क्रीमीलेयर, लेकिन अब क्रीमीलेयर नहीं लगाने देंगे।
मौजूदा सरकार को भी चाहिए कि क्रीमीलेयर की शर्त को हटाए और ओबीसी का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करें।
देश के न्यायाधीशों को भी भारत के संविधान की मूल भावना का आदर करना चाहिए और संविधान के विरोध में निर्णय नहीं देने चाहिए,यदि संविधान के विरोध में निर्णय हो भी जाए तो विधायिका को इसका संज्ञान लेना चाहिए और देश हित,जनहित, संविधान हित को देखते हुए संविधान संशोधन करना चाहिए। अब देश का ओबीसी युवा जाग चुका है, खुल कर बोलेगा अब युवा,संविधान के पक्ष में, पूर्ण रूप से संविधान लागू करवाने के पक्ष में, सबके साथ न्याय हो,इसके पक्ष में,संविधान को आंच न आए इसके पक्ष में, पूर्ण रूप से संविधान लागू करवाने की लड़ाई हम सबकी है ,आओ इसमें बढ़ चढ़कर भाग ले,
भारतीय संविधान सम्मान सुरक्षा राष्ट्रव्यापी जनजागरण अभियान का हिस्सा बने,देश में हो रहे गलत कार्यों का एकजुट होकर विरोध करें, लोगों को पीपुल्स शोशल एक्शन के लिए तैयार करें।
सुरेश द्रविड़
( राष्ट्रीय संगठन सचिव, बामसेफ)