
छत्रपति शाहू महाराज ( Shahu Maharaj ) का जन्म 26 जून 1874 को (जिला कोल्हापुर, महाराष्ट्र) कागल परिवार में हुआ। बचपन में ही वे शिवाजी महाराज ( Ch. Shivaji Maharaj ) की वंश परंपरा से जुड़ गए। महारानी आनंदीबाई ( Maharani Aanandibai ) ने उन्हें गोद लिया और इस प्रकार वे कोल्हापुर के छत्रपति बने। उनका पालन-पोषण आधुनिक और उदारवादी विचारधारा के वातावरण में हुआ, जिससे उनमें समाज सुधार के दृष्टिकोण का विकास हुआ।
सन. 1894 ई. में मात्र 20 वर्ष की आयु में वे कोल्हापुर राज्य के शासक बने। वे जानते थे कि राजा का धर्म केवल शासन करना या राजकाज चलाना भर नहीं है, बल्कि समाज में न्याय और समानता स्थापित करना भी है।
उन्होंने अपने राज्य क्षेत्र में निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा प्रारंभ की। अछूत, शोषित, पिछड़े वर्गों के बच्चों के लिए अलग छात्रावास खुलवाए। उन्होंने बालिकाओं की शिक्षा को विशेष बढ़ावा दिया। गरीब और प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा ग्रहण करने हेतु छात्रवृत्तियां भी प्रदान की। लोगों की शिक्षा के प्रति वे इतने सजक और कठोर थे कि उन्होने स्कूल से छात्रों की अनुपस्थिति पर छात्रों के माता पिता पर उस समय का एक रुपया दंड भी लगाने का प्राविधान तक किया था। ताकि माता-पिता अपने बच्चों को किसी भी दशा में स्कूल भेजने पर जोर दे। डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr Bhimrao Ambedkar ) को भी विदेश में उच्च शिक्षा ग्रहण करने में उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग प्रदान किया।
ब्राह्मणों द्वारा वेदोक्त प्रकरण के माध्यम से उनका ब्राह्मणों द्वारा अपमान करने के प्रयास की घटना के पश्चात उन्होंने अस्पृश्यता और जातिवाद के विरुद्ध ज्यादा सख्त रुख अपनाना प्रारंभ किया। दिनांक 26 जुलाई 1902 को उन्होंने अपने प्रशासन में 50% नॉकरी अछूत, शोषित पिछड़ी जातियों के लिए सुरक्षित की। वे चाहते थे कि अछूत तथा पिछड़ी जातियों के लोग राज-काज चलाना सीखकर भविष्य के लिए तैयार रहें। यह भारत के इतिहास में सामाजिक न्याय के प्रति क्रांतिकारी कदम था जो मील का पत्थर साबित हुआ। आगे चलकर यही विचार भारतीय संविधान और आधुनिक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की नींव बना।
उन्होंने अछूतों और पिछड़ों को मंदिरों तथा सार्वजनिक जगहों में प्रवेश की अनुमति के कानून बनाए तथा उन्हें व्यवसाय आदि करने के लिए विशेष प्रोत्साहन दिया।
बाल-विवाह, विधवाओ के विरुद्ध सामाजिक अमानवीय प्रथाओ, धर्म और समाज से जुड़ी कुरीतियों पर उन्होंने नियंत्रण लगाया। विधवाओं के पुनर्विवाह को प्रोत्साहन दिया।
छ.शाहूजी महाराज ने किसानों और श्रमिकों से वसूले जाने वाले अन्यायपूर्ण करों को कम किया। भूमिहीन किसानों को जमीन उपलब्ध कराने के प्रयास किए।श्रमिकों और गरीब वर्ग की स्थिति सुधारने के लिए विशेष योजनाएँ लागू की।
छत्रपति शाहूजी महाराज ( Shahu Maharaj ) का व्यक्तित्व और विचारधारा, सामाजिक न्याय
सरलतापूर्ण, न्यायप्रिय था और वे एक करुणाशील शासक थे। उनकी विचारधारा का मूल आधार “सभी को समान अवसर मिले, तभी राष्ट्र प्रगति करेगा” था। वे स्वयं को केवल राजा नहीं, बल्कि प्रजा का सेवक मानते थे।
छ. शाहूजी महाराज ( Shahu Maharaj ) का निधन 6 मई 1922 को बहुत ही अल्पायु में हुआ। उनके जाने से समाज सुधार और सामाजिक न्याय की दिशा में चल रहा आंदोलन कमजोर पड़ गया। परंतु बाद में उनकी प्रेरणा से यह आंदोलन आगे और प्रबल हुआ।
छत्रपति शाहूजी महाराज (Shahu Maharaj ) ने अपने अल्प जीवनकाल में समाज को नई दिशा देने का हर संभव प्रयास किया। उन्होंने शिक्षा, आरक्षण, समानता और सामाजिक न्याय की ठोस नींव रखी। उन्होंने मानेगांव परिषद में भीमराव आंबेडकर को इस देश का नेता घोषित किया। उनके कार्यों का प्रभाव डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर (Dr Bhimrao Ambedkar ) और आगे चलकर भारतीय संविधान (Indian Constitution) तक स्पष्ट दिखाई देता है। इसीलिए उन्हें “राजर्षि” और “सामाजिक न्याय का जनक” कहा जाता है।