देश की पूरी व्यवस्था चार जाति समूहों के हाथ में! : प्रो. जी. मोहन गोपाल।
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धर्म का मंदिर नहीं, संविधान का मंदिर होना चाहिए : डॉ. के. एस. चौहान।
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नारे सुनकर ताली बजाकर चले जाने वाला क्राउड हमे नहीं बनानी हैं!: राष्ट्रीय अध्यक्ष बामसेफ
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बामसेफ का इकतालीसवाँ (41वाँ) राष्ट्रीय अधिवेशन : उद्घाटन सत्र।
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बामसेफ का इकतालीसवाँ (41वाँ) राष्ट्रीय अधिवेशन आज दिनांक पच्चीस दिसंबर, दो हजार चौबीस (25 दिसंबर, 2024) से आरंभ हुई। जिसमें उपस्थित वक्ताओं ने अपनी-अपनी बातें रखी और लोगों को संबोधित किया।
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राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले सामाजिक क्रांति संस्थान, रिंगनाबोड़ी अमरावती रोड, नागपुर में आयोजित बामसेफ की इकतालीसवाँ (41वाँ) राष्ट्रीय अधिवेशन की उद्घाटन सत्र बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मूलनिवासी इंजीनियर आर. एल. ध्रुव की अध्यक्षता में संपन्न हुई।
पच्चीस दिसंबर, दो हजार चौबीस (25 दिसंबर, 2024) सुबह ग्यारह बजे से दोपहर दो बजे तक चली उद्घाटन सत्र में मूलनिवासी बहुजन समाज के कई बुद्धिबीजी उपस्थित रहें।
उद्घाटन सत्र में उद्घाटक के रूप में राष्ट्रीय न्यायिक एकेडमी, भोपाल के पूर्व निदेशक मूलनिवासी प्रो. जी. मोहन गोपाल और मुख्य अतिथि के रूप में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के सीरियर एडवोकेट मूलनिवासी डॉ. के. एस. चौहान उपस्थित रहें।
अपने वक्तव के दौरान मूलनिवासी प्रो. जी. मोहन गोपाल ने कहा कि, बहुत खुशी और अभिमान है कि बामसेफ से मुझे बहुत कुछ सीखने का मौका मिला।
इस देश में ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य और कायस्थ के हाथ में पूरी व्यवस्था हैं, जिन्होंने नब्बे प्रतिशत मूलनिवासियों को सभी क्षेत्रों से वंचित रखा हैं । हमारा लक्ष्य केवल रिजर्वेशन नहीं, बल्कि प्रतिनिधित्व हैं। प्रतिनिधित्व द्वारा ही कुछ चंद जाति समूहों का वर्चस्व समाप्त किया जा सकता हैं।
उन्होंने कहा कि, मैं बामसेफ को पिछले अठारह सालों से देख रहा हूं और इन अठारह सालों में बामसेफ बहुत आगे गया हैं, लेकिन देश बहुत पीछे गया हैं।
संविधान पर बात करते हुए मूलनिवासी प्रो. जी. मोहन गोपाल ने बाबा साहेब आंबेडकर के भाषण के उस अंश को याद किया जो उन्होंने विधिमंत्री के तौर पर अपने पहले साक्षात्कार में कहा था।
उन्होंने कहा कि, बाबा साहेब ने उन्नीस सौ उनचास (1949) में ही कहा था कि, “संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, अगर इसे अमल में लाने वाले लोग खराब निकले तो संविधान निश्चित रूप से अच्छा साबित नहीं होगा।”
बाबा साहेब ने उन्नीस सौ तीस में ही कहा था कि, जब ब्रिटिश चले जाएंगे तब चंद लोगों के पास देश की सत्ता आ जाएगी। हमारे लोगो (मूलनिवासी बहुजन समाज) को प्रतिनिधित्व नहीं मिला, अगर संवैधानिक रूप से प्रतिनिधित्व मिलता तो चन्द लोगों के हाथों में आज जो सत्ता हैं, वो खत्म हो जाती।
मूलनिवासी प्रो. जी. मोहन गोपाल ने देश में तेजी से बढ़ती आर्थिक असमानताओं पर भी बात की।
उन्होंने आंकड़ों के माध्यम से बताया कि कैसे शीर्ष एक फीसदी (1%) लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का चालीस फीसदी (40%) हिस्सा हैं, जबकि सबसे गरीब पचास फीसदी (50%) आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का छह दशमलव पांच फीसदी (6.5%) हिस्सा है।
उद्घाटन सत्र में अपने वक्तव्य के दौरान डॉ. के. एस. चौहान ने कहा कि, जो हमारा मूलनिवासी विचारधारा है, वो बहुत स्ट्रांग हैं और इसे अगर सही से फैलाया जाए तो बदलाव आ सकता हैं और आ भी रहा हैं।
उन्होंने कहा कि, हमारे पास संसाधन नहीं हैं, इसके बाद हमारे पास इंस्ट्रक्शन सिस्टम भी नहीं हैं।
डॉ. के. एस. चौहान ने सामाजिक बदलाव के लिए डेमोक्रेटिक समाज को महत्वपूर्ण बताया।
उनके मुताबिक, सामाजिक सिस्टम में बदलाव लाने में सालों साल लग जाते हैं, लेकिन समाज में जब-तक डेमोक्रेटिक विचार नहीं आएगा तब-तक बदलाव नहीं आएगी।
अपने वक्तव्य में डॉ. के. एस. चौहान ने पॉलिटिकल रिजर्वेशन, ईडब्ल्यूएस रिजर्वेशन और क्रीमी लियर पर भी विस्तार से बात की।
उन्होंने भारतीय समाज में फैली जाति व्यवस्था के खिलाफ बोलते हुए कहा कि, जब तक जाति को नहीं छोड़ोगे, तब तक हम कुछ नहीं कर सकते। इस जाति से हमारा कोई फायदा नहीं हैं। एससी, एसटी, ओबीसी.. सब बैकवर्ड क्लास होने चाहिए।
कैटेगराइजेशन से वो हमें बांटना चाहते हैं और जब तक हम बटते रहेंगे, हमारा कोई फायदा होने वाला नहीं हैं।
रिजर्वेशन का कैटेगरी सोशल एंड एजुकेशन बैकवर्डनेस था, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इकोनॉमिकल बैकवर्डनेस भी जोड़ दिया हैं।
डॉ. के. एस. चौहान ने कहा कि, वो जरूरत पड़ने पर हमें हिन्दू मानते हैं और जरूरत खत्म होने पर हमें हिन्दू नहीं मानते।
उन्होंने उन घटनाओं का भी जिक्र किया जब देश में राष्ट्रपति को उनकी जाति की वजह से मंदिरों में प्रवेश करने नहीं दिया जाता हैं।
सीनियर एडवोकेट चौहान ने कहा कि, एक ऐसा सिस्टम डेवलप हो जिससे धर्म के मंदिर नहीं बल्कि संविधान का मंदिर होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि, दो हजार अठारह (2018) से पहले कही संविधान की चर्चा नहीं होती थी। बामसेफ ने दो हजार अठारह (2018) में बीएस फॉर (भारतीय संविधान, सम्मान, सुरक्षा, संवर्धन) राष्ट्रव्यापी महा जनजागरण अभियान चलाया, जिससे आज हर जगह संविधान की चर्चा होती हैं।
डॉक्टर के. एस. चौहान ने कहा कि, हमारे सामाजिक चिंतक जो हुए, वो सबने जो विचार रचा वो विचार एकीकृत (integrate) करने का विचार था।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे मूलनिवासी आर. एल. ध्रुव ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि, बामसेफ एक ऐसा संगठन है, जो एक संगठन के लिए जितना उतार – चढ़ाव हो सकते हैं, उन सभी उतार – चढ़ाव को बामसेफ ने देखा हैं।
उन्होंने कहा कि, अगर आपके पास प्रगतिशील और लोकतांत्रिक विचार हैं, लेकिन आपके पास उचित युक्त संगठन नहीं हैं, तो आप कुछ नहीं कर सकते।
बामसेफ विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से पिछले चालीस से पचास सालों से मूलनिवासी विचारधारा को समाज में निरंतर प्रस्थापित करने की दिशा में काम कर रहा हैं।
किसी भी संगठन के तीन स्टेज होते हैं, पहला बर्न स्टेज, दूसरा ग्रोथ स्टेज और तीसरा मैच्योर स्टेज।
बामसेफ का बर्थ स्टेज उन्नीस सौ अठहत्तर (1978) हैं, जबकि आज हमारा संगठन (बामसेफ) ग्रोथ स्टेज में हैं ।
मूलनिवासी इंजिनियर आर. एल. ध्रुव ने कहा कि, संगठन ईमेडिएट नहीं बन सकती। इसके बनने की एक प्रक्रिया है, लेकिन एक बार संगठन बन गई तो इसे इमेडिएट खत्म नहीं की जा सकती।
ग्रोथ स्टेज की प्राकृतिक सिद्धांत हो समझाते हुए कहा कि, एक से दो, दो से चार, चार से आठ, आठ से सोलह और सोलह से बत्तीस के सिद्धांत पर जो संगठन चला उसे मैच्योर स्टेज पर पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता।
उन्होंने बामसेफ और इसके ऑफशूट विंग्स के कार्यकताओं से कहा कि, नारे सुनकर ताली बजाकर चले जाने वाला क्राउड हमे नहीं बनानी हैं।
आंदोलन को चलाने के लिए आवश्यक तीन चीजों के बारे में भी विस्तार से उन्होंने बात की, जिसमे से पहला हैं आंदोलन का एक राष्ट्रीय स्तर मुख्यालय केंद्र, दूसरा आंदोलन के लिए पूर्णतः सुसमर्पित और ट्रेंड कैडर की फौज और तीसरी वित्तीय संसाधनों की स्थिरता।
उन्होंने कहा कि, भारतीय संविधान दिखाने और नमन करने की नहीं बल्कि क्रियान्वयन करने का मामला हैं।
2017 से बामसेफ ने देशभर में बीएस फॉर अभियान चलाया। जिसके परिणाम स्वरूप आज संविधान का प्रभाव राजनीति में भी दिख रहा हैं।
अगले साल से हम बीएस फॉर अभियान के अंतर्गत संविधान क्रियान्वयन का कार्यक्रम पूरे देश में चलाने वाले हैं।
बताते चले कि उद्घाटन सत्र में देश के विभिन्न राज्यों से आए मूलनिवासी साथी सैकड़ो की संख्या में उपस्थित रहें। जिसमें महिलाएं, पुरुष और युवाओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।
उद्घाटन सत्र की प्रस्तावना मूलनिवासी आर. एस. राम ने रखी और सत्र का संचालन मूलनिवासी हसमुख चंद्रपाल ने की। जबकि
उद्घाटन सत्र के अंत में मूलनिवासी सुरेश द्रविड़ द्वारा सभी का आभार व्यक्त किया गया।
Very nice work. This organization is continuously working to awaken the mulniwasi bahujan about Phule Ambedkar movement. We know that in present scenario only phule ambedkari ideology can lead us to achieve goal of equality, fraternity, liberty and brotherhood which is also the objective of our constitution. Thi website is door of introduction to know the BAMCEF and it’s movement which was also the movement of our forefathers.
Jay bhim jay mulnivasi, jay sanvidhan jay bharat.