
पेरियार इरोड वेंकट रामासामी ( Periyar E V Ramasamy ) का जन्म 17 सितम्बर 1879 को तामिलनाडु के इरोड में एक सम्पन्न और परम्परावादी हिन्दू परिवार में हुआ था। उनके समर्थक और चाहनेवाले उन्हें पेरियार (महान व्यक्ति) के नाम से बुलाते हैं। उनके पिता वेंकटप्पा नायडू एक धनी व्यापारी थे। उनकी माता का नाम चिन्ना थायाम्मल था। उनके एक बड़े भाई और दो बहने थीं।
सन 1885 में उन्होंने स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा के लिए दाखिला लिया परंतु कुछ सालों की औपचारिक शिक्षा के बाद वे अपने पिता के व्यवसाय से जुड़ गए। बचपन से ही वे रूढ़िवादिता, अंधविश्वासों और धार्मिक उपदशों में कही गयी बातों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते रहते थे। वे जिद्दी, स्वतंत्र तथा निडर व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने हिन्दू महाकाव्यों और पुराणों में कही गई परस्पर विरोधी बातों को तर्कहीनता पूर्ण कहा और उनका तार्किक विश्लेषण करके बताने का प्रयत्न भी किया। उन्होंने सामाजिक कुप्रथाएं जैसे बाल विवाह (Bal Vivah), देवदासी प्रथा (Devdasi Pratha ), विधवा प्रथा (Vidhava Pratha) का विरोध और स्त्रियों और शोषितों, पिछड़ों के शोषण का खुलकर विरोध किया। उन्होने छुआ-छूत, जाति प्रथा का भी विरोध और बहिष्कार किया।
उनके जीवन में काशी यात्रा से क्रांतिकारी परिवर्तन आया। सन 1904 में पेरियार ( Periyar E V Ramasamy ) ने काशी की यात्रा की जिसने उनके जीवन को परिवर्तित कर दिया। काशी में वे एक धर्मशाला में रुके थे। भूख लगने पर वे वहां निःशुल्क सामूहिक भोज में गए। वह भोजन व्यवस्था सिर्फ ब्राह्मणों के लिए थी। उन्होंने फिर भी भोजन प्राप्त करने की कोशिश की पर ब्राह्मणों द्वारा पुछताछ करने पर पता लगा कि यह तो दक्षिण का शुद्र है। उत्तर भारत के ब्राह्मण पंडों का दक्षिण के लोगों से ऐतिहासिक शत्रुता की भावना रही है। ऊपर से पेरियार जी तो शुद्र थे। ब्राह्मण पंडों ने उन्हें धक्के मारकर सामूहिक भोज से अपमानित कर से निकाल दिया। इस घटना से वे आहत हुए और वे रुढ़िवादी, जातिवादी ब्राह्मणों और ब्राह्मणवादी व्यवस्था के विरोधी हो गए। इसके बाद उन्होंने किसी भी धर्म को नहीं स्वीकारा और आजीवन नास्तिक बने रहे।
पेरियार ई. व्ही. रामासामी (Periyar E V Ramasamy) सन् 1919 में वे सी. राजगोपालाचारी के पहल पर कांग्रेस के सदस्य बन गए। उन्होंने इरोड के नगर निगम के कांग्रेस पार्टी से अध्यक्ष के तौर पर कार्य किया और सामाजिक उत्थान के कार्यों को बढ़ावा दिया। गांधीजी द्वारा चलाए गए खादी के उपयोग को बढ़ाने की दिशा में भी उन्होंने कार्य किया। उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया और गिरफ्तार भी हुए। सन 1922 के तिरुपुर सत्र में वे मद्रास प्रेसीडेंसी कांग्रेस समिति के अध्यक्ष बन गए और सरकारी नौकरियों और शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण की वकालत की। लेकिन कांग्रेस की आरक्षण जैसे विषयों पर शुरू से विरुद्ध भुमिका रही है। वे जान गए थे कि कांग्रेस में ब्राह्मणों का बोलबाला है। कांग्रेस के एक अधिवेशन में ब्राह्मणों और पिछड़े वर्गों के नेताओं के लिए अलग अलग भोजन व्यवस्था किए जाने के बारे में गांधी जी को बताया लेकिन गांधी जी ने उनकी बातों का कोई संज्ञान नहीं लिया बल्कि उन्हें समाज की इस समस्या से दूर रहने को कहा। गांधी जी के इस व्यवहार से पेरियार जी को बहुत निराशा हुई। जिस के कारण सन 1925 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी को छोड़़ दिया।
उनके जीवन में वैकोम के मंदिर का आंदोलन एक प्रभावी तथा मील का पत्थर साबित हुआ । केरल के वैकोम में अस्पृश्यता के कड़े़ नियम थे। जिसके अनुसार किसी भी मंदिर के आस-पास के सडको पर अछुत लोगो का प्रवेश वर्जित था । केरल के कांग्रेस नेताओं के निवेदन पर पेरियार ने वैकोम आन्दोलन का नेतृत्व किया। यह आन्दोलन मन्दिरों की ओर जाने वाली सड़कों पर अछुतों के चलने के प्रतिबंध को हटाने के लिए किया गया था। इस आन्दोलन में पेरियार जी की पत्नी और मित्रों ने भी उनका साथ दिया। इस आंदोलन में उन्हें बड़ी कठिनाइयों तथा सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा। फिर भी वे डरे नहीं बल्कि वे और अधिक प्रखर और अपने उद्देश्य के प्रति दृढ़ होते चले गए और आत्म सम्मान आन्दोलन (Self Respect Movement ) की नींव रखी।
पेरियार और उनके समर्थकों ने समाज से असमानता और सामाजिक भेदभाव को कम करने के लिए अधिकारियों और सरकार पर सदैव दबाव डाला। ‘आत्म सम्मान आन्दोलन’ का मुख्य लक्ष्य था गैर-ब्राह्मण द्रविड़ों को उनके सुनहरे अतीत (मूलनिवासी सभ्यता) पर गर्व कराना। सन 1925 के बाद पेरियार ने ‘आत्म सम्मान आन्दोलन’ के प्रचार-प्रसार पर पूरा ध्यान केन्द्रित किया। आन्दोलन के प्रचार के एक तमिल साप्ताहिकी ‘कुडी अरासु’ और अंग्रेजी जर्नल ‘रिवोल्ट’ (1928 में प्रारंभ) का प्रकाशन शुरू किया। इस आन्दोलन का लक्ष्य महज ‘सामाजिक सुधार’ नहीं बल्कि ‘सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन’ भी था।
हिंदी भाषा का विरोध उनके आंदोलन की अमिट पहचान है। सन 1937 में जब सी. राजगोपालाचारी मद्रास प्रेसीडेंसी के मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने स्कूलों में हिंदी भाषा की पढ़ाई को अनिवार्य कर दिया। जिससे हिंदी विरोधी आन्दोलन उग्र हो गया। तमिल राष्ट्रवादी नेताओं, जस्टिस पार्टी और पेरियार ने हिंदी-विरोधी आंदोलनों का आयोजन किया जिसके फलस्वरूप सन 1938 में कई लोग गिरफ्तार किये गए। उसी साल पेरियार ने हिंदी के विरोध में ‘तमिल नाडु तमिलों के लिए’ का नारा दिया। उनका मानना था कि हिंदी भाषा लागू होने के बाद मूल तमिल सभ्यता नष्ट हो जाएगी और तमिल समुदाय उत्तर भारतीयों के अधीन हो जायेगा। अपनी राजनैतिक विचारधाराओं को छोड़ सभी दक्षिण भारतीय दलों के नेताओं ने मिलकर हिंदी के विरोध में उनका साथ दिया।
पेरियार के आंदोलन के प्रभाव से ब्राह्मणवादी कांग्रेस को विकल्प देने के लिए जस्टिस पार्टी और द्रविड़ कझगम जैसे राजनितिक दलों की स्थापना हुई। सबसे पहले सन 1916 में एक राजनैतिक संस्था ‘साउथ इंडियन लिबरेशन एसोसिएशन’ की स्थापना हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य था ब्राह्मण समुदाय के सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनैतिक शक्ति का विरोध और गैर-ब्राह्मणों का सामाजिक उत्थान। यह संस्था बाद में ‘जस्टिस पार्टी’ बन गयी। जनसमूह का समर्थन हासिल करने के लिए गैर-ब्राह्मण राजनेताओं ने गैर-ब्राह्मण जातिओं में समानता की ब्राह्मण वर्चस्व को उखाड़ फेंकने की विचारधारा को प्रसारित-प्रचारित किया। सन 1937 के हिंदी-विरोध आन्दोलन में पेरियार ने ‘जस्टिस पार्टी’ की मदद ली थी। जब जस्टिस पार्टी कमजोर पड़ गयी तब पेरियार ने इसका नेतृत्व संभाला और हिंदी विरोधी आन्दोलन के जरिये इसे सशक्त किया।
सन 1944 में पेरियार ने जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर ‘द्रविड़ कझगम’ कर दिया। द्रविड़ कझगम का प्रभाव शहरी लोगों और विद्यार्थी तथा ग्रामीण क्षेत्र भी इसके सन्देश से अछूते नहीं रहे। हिंदी-विरोध और ब्राह्मण रीति-रिवाज़ और कर्म-कांड के विरोध पर सवार होकर द्रविड़ कझगम ने तेज़ी से पाँव जमाये। द्रविड़ कझगम ने अश्पृश्यता के उन्मूलन के लिए संघर्ष किया और अपना ध्यान महिला-मुक्ति, महिला शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों पर केन्द्रित किया। वही राजनीतिक दल आज DMK और AIADMK के नाम से जाने जाते हैं।
पेरियार ई.वी. रामास्वामी नायकर एक प्रमुख तमिल सामाजिक सुधारक और द्रविड़ आंदोलन के नेता थे। उनकी कुछ प्रमुख ग्रंथ रचनाएं और लेखन कार्य निम्नलिखित हैं:
– पुस्तकें:
– The Ramayana : A True Reading (सच्ची रामायण) – इस पुस्तक में उन्होंने पारंपरिक रामायण की कहानी को चुनौती देते हुए एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है।
– ‘शोषितों पर धार्मिक डकैती‘ – इस पुस्तक में उन्होंने धार्मिक शोषण और सामाजिक अन्याय के मुद्दों पर चर्चा की है।
इसके अलावा उन्होंने कुछ नाटकों की भी रचना की।
– अंगुलीमाल नाटक
– शम्बूक वध
– सन्त माया बलिदान
– एकलव्य
– नाग यज्ञ नाटक
यह उनके प्रसिद्ध नाटक है।
पेरियार की लेखनी ने सामाजिक न्याय, समानता और तर्कसंगतता की वकालत की और उनके विचारों ने तत्कालीन तमिल समाज पर और आज संपूर्ण देश पर गहरा प्रभाव डाला है। उन्होंने जिवन भर नास्तिक दर्शन को अपनाया जो बुद्ध दर्शन की एक शाखा है।
पेरियार का आंदोलन एक सकारात्मक व्यवस्था परिवर्तन का तर्कसंगत आंदोलन था। जिसका लक्ष समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व एवं न्याय पर आधारित समाज का निर्माण था। वे सचमुच में एक महान व्यक्ति (पेरियार) थे।